आजकल हम हर दिन किसी न किसी तरीके से AI यानी Artificial Intelligence का इस्तेमाल करते हैं। कभी गूगल मैप से रास्ता पूछते हैं, कभी यूट्यूब पर अपनी पसंद की वीडियो देखते हैं, तो कभी किसी वेबसाइट पर चैटबॉट से बात करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब काम करते कैसे हैं? इसके पीछे होता है AI, जो मशीनों को “समझदार” बनाता है।
AI का मतलब है ऐसी टेक्नोलॉजी जो मशीनों को इंसानों की तरह सोचने और फैसले लेने की ताकत देती है। लेकिन मशीनें इंसानों जैसी सोच कैसे सकती हैं? इसके लिए उन्हें पहले सिखाया जाता है। जैसे एक बच्चा धीरे-धीरे सीखता है कि आग जलाती है और पानी ठंडा होता है, वैसे ही AI को भी डेटा देकर सिखाया जाता है।
मान लो हमें AI को यह सिखाना है कि बिल्लियों और कुत्तों में क्या फर्क है। इसके लिए हम उसे हज़ारों तस्वीरें दिखाते हैं — कुछ बिल्लियों की और कुछ कुत्तों की। फिर AI इन तस्वीरों को देखकर खुद से समझने लगता है कि बिल्लियों के कान कैसे होते हैं, उनकी आंखें कैसी होती हैं, या उनकी पूंछ कैसी होती है। धीरे-धीरे वो इन सब चीज़ों से सीख जाता है।
जब AI सीख लेता है, तब वह नए डेटा को देखकर खुद से पहचान सकता है। जैसे अगर अब उसे एक नई तस्वीर दिखाई जाए, तो वो बता सकता है कि इसमें बिल्ली है या कुत्ता। यही तरीका गूगल मैप, यूट्यूब, नेटफ्लिक्स, और चैटबॉट्स में भी इस्तेमाल होता है।
गूगल मैप्स AI की मदद से यह समझता है कि कौन सा रास्ता तेज़ है, कहाँ ट्रैफिक है, और कौन सा रास्ता सबसे अच्छा रहेगा। अगर ट्रैफिक बदल जाए, तो वो तुरंत नया रास्ता भी बता देता है। यूट्यूब या नेटफ्लिक्स AI से यह समझते हैं कि हमें कैसी वीडियो या फिल्में पसंद हैं, और फिर वैसी ही चीज़ें सजेस्ट करते हैं।
AI सिर्फ एंटरटेनमेंट या रास्ता दिखाने के लिए ही नहीं, बल्कि हॉस्पिटल्स, स्कूल्स, और ऑफिसेस में भी इस्तेमाल हो रहा है। डॉक्टर AI की मदद से बीमारी पहचान सकते हैं, स्कूलों में बच्चों के लेवल के हिसाब से पढ़ाई प्लान की जा सकती है, और दफ्तरों में काम आसान हो सकता है। लोग सीधे ही बिना किसी तामझाम के पीपीटी, एक्सेल, वर्ड वाला काम आसानी से कर लेंगे। डॉक्टरों को जब समझ न आए कि ये क्या है तो लक्षणों को लिखते चले जाएंगे और उसके हिसाब से AI खुद ही बता देगा कि मरीज को ये बीमारी है और इसका ये इलाज है। स्कूलों में बच्चों को होम वर्क करने के लिए रेडी रेफरेंस मिल जाएगा। लेकिन यह उनके अपनी समझ को, सोचने समझने के क्रियाकलाप को संकुचित कर सकता है। जब खुद से किताबें पढ़ते हुए पन्ने पलटें जांय, नोट्स बनाए जांय तो चीजें ज्यादा याद रहती है। सब कुछ आटोमेटिक हो जाय तो हमारा दिमाग भी जंग खाने लगेगा। वो चीजों पर रिसर्च करने की बजाय सीधे इशारा करेगा कि Ai से पूछो। वह बता देगा। याद किजिए कि जब मोबाइल नहीं था तो पहले हमें हर किसी का फोन नंबर याद रहता था। सब नहीं तो कुछ तो दिमाग में रहता ही था कि ये फलां का नंबर है। तब लोग नंबरों को डायरी में लिखते थे। जब से मोबाइल आया लोगों को डायरी की जरूरत ही नहीं पड़ती। नंबर पहले ही सेव हो जाता है। तो नंबर याद रखने की क्षमता हमारी खत्म हो गई है। वही काम AI भी कर रहा है। हमें सब कुछ बना बनाया मिल रहा है तो रिसर्च करने खोज बीन करने का माद्दा भी नहीं रहा। अब हमें सब कुछ पका पकाया मिल रहा है तो अनजाने ही हम अपने आप में संकुचित होते जा रहे हैं, भले ही AI, Internet के चलते हमें लगे कि दुनिया फैल रही है। हमारी वहां तक पहुंच हो रही है लेकिन देखा जाय तो हम अपने में ही संकुचित होते जा रहे हैं।
कुल मिलाकर, AI एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को इंसानों जैसा समझदार बनाती है। यह हमारी जिंदगी को तेज़, आसान और स्मार्ट बना रहा है। जैसे-जैसे AI और सीखता जाएगा, वैसे-वैसे हमारी दुनिया और भी स्मार्ट होती जाएगी।